जूनागढ़ (गुजरात) प्रकृति और आस्था का संगम / Junagarh (Gujarat) Prakriti Aur Aastha Ka Sangam By हिंदी की दुनिया इंडिया / Hindi Ki Duniya India
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जूनागढ़ (गुजरात) प्रकृति और आस्था का संगम / Junagarh (Gujarat) Prakriti Aur Aastha Ka Sangam
गिरनार पहाड़ियों की गोद में बसा हुआ जूनागढ़ गुजरात का सबसे ऊंचा स्थल है। क्षेत्र में 800 से ज्यादा हिंदू व जैन मंदिर है, इसलिए इसे मंदिरों का महागढ़ कहा जा सकता है। सभी धर्मों और मतों के अनुयायियों की आस्था यहां से जुड़ी हुई है। आज विशाल सिंह के साथ चलते हैं प्रकृति और आस्था के संगम स्थल जूनागढ़ के भ्रमण पर...
अरब सागर के किनारे स्थित यह ऐतिहासिक-सांस्कृतिक स्थान आज भी हर किसी को लुभा लेता है। बादलों से बात करता, हरे पेड़ पौधों से सुसज्जित अनगिनत झरनों और मंदिरों वाला यह सुंदर स्थान सच मायने में एक देवस्थान ही है। शिशिर की शुरुआत का समय घने जंगल से घिरे गिरनार पर्वत की परिक्रमा के लिए श्रेष्ठ माना जाता है। गुजरात और आसपास के कई राज्यों से पैदल यात्रा कराने वाले श्रद्धालु भी इस पावन गढ़ के 9000 सोनिया सूर्योदय से पहले ही चढ़ जाते हैं। दामोदर कुंड से शुरू होने वाली इस परिक्रमा एवं चढ़ाई में हर धर्म और मत के अनुयायी शामिल होते हैं और एक ही परमात्मा के अलग-अलग रूपों की आराधना करते हैं।
-: महाबत खान का मकबरा :-
गुजरात का यह ताजमहल पीले पत्थरों पर चमकते हुए नक्काशीदार आभूषण जैसा प्रतीत होता है। महल की मीनारों पर अपनी सर्पाकार सीढ़ियां इस मकबरे को अनूठा बनाती है। पुराने शहर की गलियों में स्थित यह मकबरा जूनागढ़ के आखिरी नवाब वंश द्वारा बनाया गया था। ताजमहल जैसी संरचना वाले इस मकबरे को बहदुद्दीन हसनैन भाई की कब्र को संजोने हेतु बनाया गया था। इस इमारत की खास बात यह है कि इसकी वास्तुकला हिंदू इस्लामिक गोथिक एवं यूरोपियन शैली का समन्वय है।
-: सोमनाथ मंदिर :-
जूनागढ़ से करीब 94 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है सोमनाथ मंदिर, जो इतिहास में काफी विख्यात रहा है। उच्च चलती हुई अरब सागर की पारदर्शी लहरें सोमनाथ मंदिर पर ऐसे लपकती है, जैसे भगवान के चरणों में भक्त। सूर्यास्त के समय चमकती लहरें, केसरी रंगों की गहराई में गुलाबी आसमान और महादेव के मंदिर पर लहराती ध्वजा एक ऐसा विस्मयकारी प्राकृतिक चित्र रचती है, जिसे देखकर आप दंग रह जाएंगे।
-: कल्पना-लोक स माधवपुर बीच :-
जूनागढ़ से सोमनाथ की तरफ जाते हुए रास्ते के एक तरफ हरे-भरे मैदान हैं, तो दूसरी और अरब सागर का अथाह नीला समंदर। आभूषणों से सुसज्जित ऊंट और रंग-बिरंगे गुब्बारे बेचतें बच्चे इस सफेद रेत वाले माधवपुर बीच को काल्पनिक चित्र जैसा महसूस कराते हैं। बीच पर चार्ट की दुकानों से चनाजोर खाते हुए इस अंदर दृश्य का लुफ्त उठाना अपने आप में एक अनोखा अनुभव है। इस बीच पर सूर्यास्त का नजारा जरूर देखना चाहिए।
-: जूनागढ़ की देवी मां अंबा :-
केवल जूनागढ़ ही नहीं,राज्य भर में पूजी जाने वाली मां अंबा के इस मंदिर में नवरात्र के दिनों भक्तों की भीड़ लगी रहती है। गुजरात के हर कोने से नवविवाहित जोड़े मां अंबा से आशीर्वाद लेने के लिए साथ-साथ पहाड़ी चढ़कर एक दूसरे के प्रति प्रेम और सम्मान का परिचय देते हैं। देवीपूजक के लिए यह तीर्थस्थान है। यात्रियों के लिए यहां तक पहुंचना एक आह्लादित कर देने वाला अनुभव होता है।
-: नेमिनाथ देव का जैन मंदिर :-
घर के पहले शिखर पर जैनियों के तीर्थंंकर नेमिनाथ देव का विशाल मंदिर स्थित है। मान्यता के अनुसार, 12 वीं सदी का यह मंदिर उसी स्थान पर बनाया गया है, जहां 22 वें तीर्थंकर नेमिनाथ ने तपस्या कर निर्वाण हासिल किया था। इस मुख्य मंदिर के अलावा यहां बाकी तीर्थ कारों को समर्पित छोटे-छोटे मंदिर भी इस भवन-समूह को धार्मिक तथा खूबसूरत बनाते हैं।
-: सम्राट अशोक का शिलालेख :-
सम्राट अशोक द्वारा स्थापित 14 शिलालेखों में से एक गिरनार की गोद में बसे जूनागढ़ में स्थित है। इस शिलालेख की तिथि ईसा पूर्व 250 है, जो इस शहर की प्राचीनता को प्रमाणित करती है। इस नक्काशी को इतिहासकार सबसे पहला संस्कृत शिलालेख मानते हैं। सम्राट अशोक से लेकर स्कंदगुप्त जैसे कई राजाओं के लेख इस विशाल शीला में है, जो ब्राह्मी एवं संस्कृत भाषा में लिखे गए हैं। यह शिलालेख प्राचीन शहर के किलों, मंदिरों और तालाबों की जानकारी देते हैं। कुछ राजाओं ने अपनी प्रजा के लिए विशेष संदेश भी पत्थर पर लिखवाए हैं।
-: भवनाथ महादेव :-
गिरनार की तलहटी में स्थित और नागा साधुओं का संसार माना जाने वाला यह शिव मंदिर महाशिवरात्रि के दिन एक मिनी-कुंभ मेले में परिवर्तित हो जाता है। विभिन्न स्थानों से आए नागा साधु इस मंदिर में शिवजी की पूजा करते हैं और उनके हर हर महादेव की नाद से गिरनार घाटी गूंज उठती है।
-: कालिका मंदिर :-
इसे अघोरियों का स्थान माना जाता है। लाल आंखों, बंधी हुई जटाओं और शरीर पर मली भी भस्म के साथ अघोरी साधुओं की टोली स्वयं शिवजी के भूतों की टोली जैसी प्रतीत होती है। महाकाली और शिवजी के भक्त भवनाथ मंदिर में दर्शन करने के बाद यहां जरूर आते हैं।
-: महान कवि नरसिंह मेहता की नगरी :-
गांधी जी के प्रिय भजन "वैष्णव जन तो तेने कहिए" के रचनाकार जूनागढ़ के निवासी नरसिंह मेहता थे। इस कवि के भजनों से जुड़ी लोक-कथाएं भी काफी दिलचस्प है। भारत भर में 'हुंडी' की प्रथा को मंदिर तक लाने का श्रेय भी नरसिंह मेहता को जाता है। कहा जाता है कि नरसिंह मेहता की भक्ति एवं दरिद्रता का मजाक उड़ाते हुए जब कुछ लोगों ने उनसे अपने भगवान की प्रार्थना कर उधारी चुकाने का सुझाव दिया तो कवि ने भक्तिभावपूर्ण 'हुंडी' भगवान कृष्ण के नाम लिख दी। मेहता हर सुबह गिरनार में स्थित दामोदर कुंड में स्नान करने के बाद अपने श्यामसुंदर कृष्ण से गीतों में बात करते थे। वही गीत आज राज्य भर में 'प्रभातिया' अर्थात प्रभात गीतों के नाम से मशहूर है।
-: सोरठ राज्य का किला :-
ऊपरकोट जूनागढ़ शहर की स्थापना से पहले गुजरात में रजवाड़े हुआ करते थे और सौराष्ट्र प्रदेश की यह नगरी सोरठ राज्य का एक अहम हिस्सा थी। मौर्य राजाओं द्वारा बनवाए गए इस किले को हर राजवंश ने अपने वास्तुशिल्पा से तराशा और इस किले को अभेद्य गढ़ का खिताब दिलाया। जीन दुश्मनों ने किले की दीवार भेदने की कोशिश की, वे नीचे बनी खाई में गिरकर मगरमच्छों का भोजन बन गए। मौर्य काल के बाद लगभग 300 सालों तक यह किला विरान पड़ा रहा, उसके बाद जुड़ा सभा राजाओं ने फिर से इसमें जान फुंकी।
-: दातार दरगाह मंदिर :-
प्याज के आकार में गुंबज पर बनी इस्लामिक कलाकृतियां इस जगह को मकबरे का रूप देती हैं। संत जमाल शाह दातार की समाधि के तौर पर बनवाया गया मंदिर मुस्लिम समुदाय के लिए एक दरगाह है, किंतु इसी संत को एक हिंदू साधु के रूप में मानने वाले श्रद्धालुओं के लिए यह दातार पहाड़ी की गोद में बना दातार मंदिर है। खास बात यह है कि एक ही संत को दोनों धर्मों के लोग अपनी आस्था के अनुसार पूजतें हैं। सर्दियों में यह जूनागढ़ की हरियाली को चारों तरफ से निहारने का एक व्यू-प्वाइंट बन जाता है। तमाम स्थानीय यात्री इस नजारे का लुफ्त उठाने यहां आते हैं।
-: ऊपरकोट के वाव यानी कुएं :-
गुजरात और राजस्थान तो अपनी वाव और बावलियों के लिए मशहूर है, किंतु सोरठ मैं ज्यादातर कुओं यानी वाव की कहानियां मजेदार है।
-: अड़ी कड़ी वाव :-
नौ परतों वाले इस गहरे कुएं में पत्थरों की सीढ़ियां उतर कर जाना पड़ता है। इसके निर्माण से जुड़ी कहानी है कि महिनों की खुदाई के बाद भी जब कुएं में पानी नहीं निकला, तब एक ज्योतिषी की सलाह पर दो बहनों अड़ी और कड़ी ने कुएं में कूदकर बलिदान देने का फैसला किया था। बलिदान के साथ ही कुआं पानी से भर गया और आज तक यह सूखा नहीं है। दोनों बहनों की याद में कोई पास के पेड़ पर चूड़ियां और चुनरी बांधता है तो कोई प्रार्थना करता है।
-: रानवघण कुआं :-
राजा रानवघण द्वारा बनाया गया यह कुआं इतना गहरा है कि ऊपर से पानी नहीं दिखता। गुजरात के बाकी वावों की तरह इस कुएं में छिपी हुई सीढ़ियां है। इस कुएं का पानी खेतों में इस्तेमाल किया जाता था। कुएं पर बैलों की मदद से पानी निकालने का प्रबंध भी किया गया है।
-: एशियाई शेरों का इकलौता गिर अभयारण्य :-
एशियाई शेरों (सिंहों) का यह इकलौता अभयारण्य जूनागढ़ से लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। सफारी द्वारा यहां सिर्फ अकेला शेर ही नहीं, बल्कि शेरों का समूह को भी एक साथ देखा जा सकता है। सुनहरी घास और झाड़ियों में टहलते शेर आपको मोगली की दुनिया में होने का आभास कराते हैं। अभयारण्य के आसपास बने रिसॉर्ट्स वह गांवों मैं रात्रिवास कर आप सुबह सिंहों को सरोंवरों के आसपास घूमते देख सकते हैं।
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