हस्तिनापुर ( उत्तरप्रदेश ) गौरवपूर्ण स्मृतियों से सजी नगरी / Hastinapur ( Uttarpradesh ) Gauravpurn Smritiyo se saji Nagri By हिंदी की दुनिया इंडिया / Hindi ki Duniya India

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हस्तिनापुर ( उत्तरप्रदेश ) गौरवपूर्ण स्मृतियों से सजी नगरी / Hastinapur ( Uttarpradesh ) Gauravpurn Smritiyo se saji Nagri 

महाभारतकालीन भारत के सांस्कृतिक प्रतीकों की जीवंत दास्तां सुनाता है पश्चिमी उत्तर प्रदेश स्थित हस्तिनापुर। मेरठ से 37 किलोमीटर एवं देश की राजधानी दिल्ली से 100 किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह शहर इस मौसम में पर्यटको से भरा रहता है। यह जैन-सिख श्रद्धालुओं का पवित्र पड़ाव भी है। विशाल सिंह के साथ आज चलते हैं इस शहर के सफर पर ...

-: हस्तिनापुर :-

हस्तिनापुर मेरठ जिले में स्थित ऐतिहासिक और पौराणिक घटनाओं की एक धर्म धरा है। यहां पग-पग पर महाभारतकालीन प्रसंग जीवंत हो उठते हैं। जनश्रुतियों, वेदों से लेकर वैज्ञानिक शोध-खोज तक में इसके साक्ष्य मिलते हैं । हालांकि द्वापर से कलियुग की तमाम घटनाओं का गवाह यह इलाका समय के साथ काफी बदला भी है । आध्यात्मिक प्रवृत्ति के लोगों के लिए आज यहां तीन धर्म की त्रिवेणी बहती है तो प्रकृति प्रेमियों को सर्दियों में मेहमान पक्षियो का कलरव खींचता है । गर्मियों में सुकून देती सैंक्युअरी का विशाल क्षेत्र बाहें फैलाए पर्यटको का स्वागत करता है । 

         पांडवों और कौरवों से जुड़ी तमाम घटनाओं का साक्षी हस्तिनापुर आज जैन धर्म का बड़ा केंद्र बन चुका है दर्जनों धर्मशालाएं, मंदिर, ध्यान केंद्र आपको एक अलग आभास कराएंगे। गंग नहर से ठीक पहले बायीं ओर वृहद वन्य क्षेत्र जंगल के रोमांच को बढ़ाता है तो नहर पार करते ही दाहिने हाथ पर पुराने टिलों की परतें सभ्यताओं को समेटे दिखती है। इतिहास के पन्नों से भी ज्यादा कहानियां इन परतों में मिल जाएंगी। बड़ी संख्या में यहां बाहर से आकर बसे बंगाली और पंजाबी समाज के लोग भी मिलेंगे। और हां, पूरे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मछली का बंगाली स्वाद भी हस्तिनापुर के छोटे से छोटे ढाबों में मिल जाएगा। कुल मिलाकर घुमक्कड़ी के लिए आदर्श स्थान है।

-: दानवीर कर्ण का मंदिर :-

 मान्यतानुसार कर्ण को दान करने के लिए सोना, मां कामाख्या देवी दिया करती थीं । यह कामाख्या मंदिर हस्तिनापुर में ही था जो जमीन के अंदर धंस चुका है । प्रमाण के नाम पर मंदिर का कुछ हिस्सा उभरा हुआ दिखाई देता है । यहां एक बोर्ड भी लगा हुआ है । मान्यता है कि सती मां का नूपृर इसी स्थान पर गिरा था । मंदिर से सोना लेकर कर्ण जहां दान करते थे, उसे कर्ण घाट कहा जाता है । वहीं पर कर्ण मंदिर बना है । इस मंदिर में देवी मां की मूर्ति है और उस मंदिर में छत पर अद्भुत आकृति बनी है । उसी के सामने शिवलिंग है, जिसका अध्र्य पीतल से बना है । वहीं प्राचीन द्रौपदेश्वर मंदिर, द्रोण कूप व द्रोपदी घाट एवं पितामह भीष्म का माता गंगा से मिलने का स्थान भी मौजूद है । 

-: पांडवेश्वर मंदिर :-

मान्यता है कि महाभारत काल मे ही कुरुवंश ने इसकी स्थापना की थी । वर्तमान में यहां शिवलिंग स्थापित हैं । इसके प्रांगण में बरगद का विशाल वृक्ष खडा है । जनश्रुति के अनुसार नजदीक में ही बहने वाली गंगा ( अब यहां से गंगा नहीं बहती । छोटा जलस्रोत है जिसे बूढी गंगा कहते हैं ) में स्नान कर पांडव शिवलिंग की पूजा-अर्चना करते थे । मंदिर के चारों ओर गुफाएं स्थापित हैं । विदुर टीला इसी परिसर में है । यहां भगवान कृष्ण कौरवों व पांडवों को युद्ध न करने के लिए समझाने आए थे । यहां से लौटकर पांडव टीला जाया सकता है । इसके बारे में काफी कुछ सुना-कहा गया है । यहां से आगे बढ़ेंगे तो पांडव टीला पर द्रोपदी कूप है । इसका पानी सभी रोगों को हरने वाला माना जाता रहा है । पांडव टीला परिसर में ही राजा रघुनाथ महल स्थित है । ब्रिटिश काल में देश के क्रांतिकारियों ने इस महल की गुफाओं में रहकर आजादी का ताना-बाना बुना था । महल का कोई अवशेष तो नहीं है पर तीन कमरे उसकी याद दिलाते हैं । 

-: हस्तिनापुर की पहचान है जंबूद्वीप :-

जैन धर्म के कूल 24 तीर्थंकरों में से 16वें, 17वें तथा 18वें तीर्थंकर शांतिनाथ, कुंथुनाथ व अरहनाथ का जन्म इसी पावन धरती पर हुआ था । 250 फीट के व्यास में सफेद-रंगीन संगमरमर पत्थरों से बना वृत्ताकार जंबूद्वीप दर्शनीय है । ज्ञानमती माता जैन धर्म की संत हैं । उन्होंने यहीं रहकर जंबूद्वीप को विश्वस्तरीय पहचान दिलाई । दरअसल, 1974 में उनके यहां आने के बाद इस परिसर की आधारशिला रखी गई । इसके बीच में 101 फीट ऊंचा सुमेरु पर्वत है । यहां तीन लोक रचना मंदिर में नरक, मध्य लोक व स्वर्ग लोक के बारे में बताया गया है। इसे देखने के लिए सीढी और लिफ्ट भी लगी है । यहां अष्टापद तीर्थ की रचना और उसकी आकृति इतनी अदूभुत है कि आपके कदम यहां खुद ही बंध जाएंगे । मंदिर के अंदर फोटो नहीं खींच सकते, लिहाजा आंखों में यहां की भव्यता को कैद कर लौटना होगा।

-: पंज प्यारे भाई धर्म सिंह का जन्म स्थल :-

हस्तिनापुर से लगभग 2.5 किमी. की दूरी पर ही सैफपुर गांव में सिखों के पंज प्यारे भाई धर्म सिंह का गुरुद्वारा स्थित है, जो उनका जन्म स्थान रहा है । गुरुद्वारा साहिब की देखरेख करने वाले बाबा जोगेंद्र सिंह ने बताया कि गुरुद्वारे में शीश नवाने से पूर्व पवित्र सरोवर में स्नान करते हैँ । यात्रियों लिए 24 घंटे लंगर व ठहरने की सुबिधा है । भाई धर्मसिंह के नाम पर ही धर्मार्थ चिकित्सालय भी चलता है । गुरुद्वारा साहिब में प्रत्येक अमावस्या को जोड़ मेला आयोजित होता है ।

-: कैलास पर्वत से करें विहंगम नजारा :-

यहां कैलास पर्वत एक 131 फीट ऊंची इमारत उच्ची है, जिनका निर्माण श्री दिगंबर जैन मंदिर, हस्तिनापुर के तत्वावधान में किया गया है । यहां पर मुख्य देव ऋषभनाथ है, जो प्रथम जैन तीर्थकार थे । अप्रैल 2006 में कैलाश पर्वत का पंच-कल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव पूरा हुआ । कैलास पर्वत परिसर मे विभिन्न जैन मंदिरों के अलावा यात्री निवास, भोजनालय, आडिटोरियम, हेलीपैड एवं अन्य बहुत से आकर्षक पर्यटन स्थल स्थित है । कैलास पर्वत के दर्शन के लिए पर्यटकों का यहां तांता लगा रहता है।

-: वार्ड वाचिंग का आनंद :-

जिस रास्ते से आप आए थे उसी रास्ते पर थोड़ा दूर लौटेंगे तो वन्य जीव विहार का रास्ता मिलेगा। वैसे यहां जितनी जल्दी सुबह के समय जाएंगे उतना ही रोमांच बढ़ेगा। हाल ही में रखी गई घड़ियाल, डॉल्फिन व कछुए की जीवंत प्रतिकृति जीव-जंतुओं को जानने की ललक बढ़ा देगी। पास मैं व्याख्यान केंद्र में सैक्चुअरी से जुड़े सभी पहलुओं से रूबरू हुआ जा सकता है। यहीं पर गंगा का किनारा है जो पर्यटन के अनुभव के आनंद को कई गुना बढ़ा देता है। अगर मेहमान परिंदों को देखने का शौक रखते हैं तो बस 10 किलोमीटर की दूरी पर ही भीकुडं की झीलें बर्ड वाॅचिंग कि आपकी इच्छा पूरी करेंगी। यहां दिसंबर से मार्च तक साइबेरियन पक्षियों का जमावड़ा रहता है। मखदुमपुर घाट के निकट ही घड़ियाल धूप सेंकतें मिल जाएंगे। यहीं पर कछुआ संवर्धन केंद्र भी है।

 -: परीक्षितगढ़ का आकर्षण :-

मेरठ जिला मुख्यालय से पूरब में बसा रामायण एवं महाभारतकालीन नगर परीक्षितगढ़ अपने अंदर अनेक इतिहास संजोए बैठा है।यहां के ऐतिहासिक स्थल ना केवल पर्यटकों को आकर्षित करते हैं, बल्कि प्राचीन इतिहास से भी उन्हें रूबरू कराते हैं।हस्तिनापुर से करीब 20 किलोमीटर दूर ऋषि-मुनियों की तपोभूमि पर एक किले का निर्माण कराया गया और उस जगह का नाम परीक्षितगढ़ रखा गया यहां आस-पास ढेरों पर्यटक स्थल हैं।

-: रामायणकालीन इतिहास :-

महाभारत काल से पूर्व परीक्षितगढ़ अनेक ऋषि-मुनियों की तपोभूमि रहा। यहां गार्गी ऋषि, ऋषि विश्वामित्र, कात्यायन, विभाण्डक, ऋ्ंगींऋषि, लोमस ऋषि सहित अनेक ऋषियों के आश्रम व उनकी शाखाएं मौजूद रहीं, जिनके दुर्लभ प्रमाण होने का दावा आज भी यहां किया जाता है।

-: गोपेश्वर मंदिर :-

नगर के पश्चिमी छोर पर स्थित प्राचीन गोपेश्वर धाम है।मान्यता है कि महाभारत युद्ध को रोकने के लिए भगवान श्री कृष्ण संधि प्रस्ताव लेकर इंद्रप्रस्थ से हस्तिनापुर आ रहे थे, तब उन्होंने इस स्थान पर रात्रि विश्राम किया था और शिव की आराधना करने के लिए शिवलिंग की स्थापना की थी। इस शिवलिंग को गोपेश्वर नाम दिया। उन्होंने माता कात्यायनी का आह्वान किया था। शिवलिंग और प्राचीन गुफा आज भी मंदिर में स्थापित है।

-: गांधारी तालाब में आस्था की डुबकी :-

नगर के दक्षिण में स्थित गंधारी तालाब के बारे में मान्यता है कि यहां प्राचीन गार्गी आश्रम था। दूरदराज से ज्ञान अर्जन करने के लिए विद्यार्थी आते थे। आश्रम में विशाल यज्ञशाला थी। कौरवों कि माता गांधारी ने तालाब का निर्माण कराया था। गांधारी हस्तिनापुर से एक गुफा के जरिए यहां स्नान करने आती थी। स्नान के पश्चात शिवालय मे पूजा-अर्चना करती थीं।

-: बरनावा लक्षागृह :-

बागपत जिले की बड़ौत तहसील के बरनावा गांव में महाभारतकालीन लक्षागृह के अवशेष हैं। मान्यता है कि दुर्योधन ने पांडवों को खत्म करने के लिए वारणावत (अब बरनावा) में लाख व मोम से एक भवन बनवाया था। आग लगते ही पांडव जिस सुरंग से सुरक्षित निकल गए थे, वह हिंडन के किनारे खुलती है। गांव के दक्षिण में करीब 100 फीट ऊंचा और 30 एकड़ भूमि पर फैला टिला लाक्षागृह के अवशेष के रूप में विद्यमान है।

-: एकादश रूद्र मंदिर :-
मोर्ना-बिजनौर मार्ग पर लगभग 25 किलोमीटर की दूरी पर शुकताल स्थित है। यहां शुकदेवजी मंदिर परिसर से थोड़ी दूर पर ही एकादश रूद्र शिव मंदिर स्थित है जिसका निर्माण वर्ष 1401 में हुआ था। अब भी मंदिर परिसर में उक्त समय की मूर्तियां, भित्तिचित्र तथा संरचना विद्यमान है। यही हनुमानजी की चरण से मुकुट तक की लगभग 65 फीट 10 इंच तथा सतह से 77 फीट ऊंची मूर्ति स्थापित है। सन् 1987 में स्थापित किए गए हनुमतधाम परिसर में स्थित इस मूर्ति की एक अन्य विशेषता यह है कि इसके भीतर कागज पर विभिन्न लिपियों में राम नाम लिखे 700 करोड़ नाम समाहित है।




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