(मध्यप्रदेश) मैहर "आस्था-संस्कृति से खास पहचान" / (Madhya Pradesh) Meher "Aastha Sanskriti se khas pahchan" By हिंदी की दुनिया इंडिया / Hindi Ki Duniya India

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( मध्य प्रदेश )  मैहर 

               आस्था-संस्कृति से खास पहचान

मध्य प्रदेश के पूर्वोत्तर भाग में स्थित सतना जिले की तहसील रहा मैहर, माता शारदा के मंदिर और संगीत साधक उस्ताद अलाउद्दीन खां के कारण देश-दुनिया में प्रसिद्ध है।‌ आज चलते हैं विशाल सिंह के साथ सतना व मैहर के सफर पर...

प्राचीनता इस शहर की पहचान है। यहां आप ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रंगों की बेजोड़ झलक देख सकते हैं। टमस नदी के किनारे बसे आज के औद्योगिक शहर सतना आने का एक बड़ा उद्देश्य यहां से करीब 44 किमी. की दूरी पर स्थित मैहर स्थित माता शारदा का दर्शन है। यदि देश की संगीत विरासत में रुचि रखते हैं, तो इस लिहाज से भी मैहर आपका स्वागत करने के लिए तैयार मिलता है। मैहर घराने के संगीत साधक उस्ताद अलाउद्दीन खां की विरासत का दीदार करने भी यहां दूर-दूर से लोग आते हैं।


-: नवरात्र की रौनक :-

 मैहर स्थित मां शारदा मंदिर की सबसे बड़ी खासियत यह मानी जाती है कि जब से देवी त्रिकूट पर्वत पर विराजमान हैं, तब से यहां अखंड ज्योति जल रही है। इस ज्योति के दर्शनार्थ यहां भक्तों की भीड़ जमा होती है। इसी पर्वत की चोटी पर माता के साथ ही काल भैरव, हनुमान, देवी काली, दुर्गा, गौरीशंकर, शेषनाग, फूलमति माता, ब्रह्मदेव और जालपा देवी की भी पूजा की जाती है। यह पूरा इलाका आध्यात्मिक शांति की चाह रखने वालों के लिए उपयुक्त है। इस जगह पर आना आत्मिक सुख दे सकता है।


-: मंदिर की ऐतिहासिकता :- 

माना जाता है कि माता शारदा की मूर्ति की स्थापना विक्रम संवत 559 में की गई थी। मूर्ति पर देवनागरी लिपि में शिलालेख भी अंकित है। इसमें बताया गया है कि सरस्वती के पुत्र दामोदर ही कलयुग के व्यास मुनि कहे जाएंगे। दुनिया के जाने-माने इतिहासकार ए. कनिंघम ने इस मंदिर पर विस्तार से शोध किया है। यहां प्राचीन काल से ही बलि देने की प्रथा चली.आ रही थी, लेकिन 1922 में सतना के तत्कालीन राजा ब्रजनाथ जूदेव ने पशुबलि पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया। चैत्र नवरात्र में यहां पूरे 9 दिन औसतन करीब 20 लाख और शारदीय नवरात्र के दिनों में तकरीबन 25 लाख श्रद्धालु दर्शन-पूजन करते हैं। रोपवे का आनंद: मैहर स्थित मां शारदा देवी मंदिर में हाल के वर्षों में आधुनिकता के साथ कई बदलाव भी हुए हैं। पहले श्रद्धालुओं को पहाड़ों के बीच से गुजरने वाली सीढ़ियों का सफर करके मंदिर तक पहुंचना पड़ता था, पर अब वे रोपवे का आनंद लेते हुए माता का दर्शन कर सकते हैं। बड़ी संख्या में श्रद्धालु माता की चौखट तक पहुंचने के लिए रोपवे का प्रयोग करते हैं। हालांकि मंदिर तक पहुंचने के लिए जर्जर हो चुकी पुरानी सीढ़ियों को बंद करके नई सीढियों का निर्माण भी कराया गया है। पर सीढ़ियों से मंदिर तक पहुंचने में लगभग 2 घंटे का समय लगता है, जबकि रोपवे के माध्यम से श्रद्धालु मात्र 5 मिनट में ही मंदिर तक पहुंच जाते हैं। दामोदर रोपवे के प्रबंधक मुन्ना सिंह के अनुसार, मैहर माता के दर्शन कराने के लिए 25 ट्रॉलियां लगाई गई हैं। एक ट्रॉली में एक साथ 4 भक्तों के बैठने की व्यवस्था है। इस तरह 25 ट्रॉलियों के जरिए एकबार में 100 भक्त नीचे से ऊपर जाते है। ट्रॉली क्रमशः ऊपर से नीचे की ओर घूमती रहती है। रोपवे का साल में एक से दो बार मेंटिनेंस किया जाता है। उस समय सिर्फ एक-दो दिन के लिए ही बंद रहता है। रोपवे मार्ग से पहाड़ी स्थित मंदिर तक की दूरी लगभग डेढ़ किलोमीटर है। रोपवे से आने-जाने का किराया 105 रुपये है। 


-: आल्हा-ऊदल भी थे माता के भक्त :-

 स्थानीय किंवदंती के अनुसार, मैहर देवी देश का इकलौता शारदा मंदिर है। कहा जाता है कि बुंदेलखंड के वीर योद्धा आल्हा को यहीं से अमरत्व का वरदान मिला था। इस मंदिर के बारे में क्षेत्रीय निवासी 65 वर्षीय रामाधार ने बताया कि पृथ्वीराज चौहान के साथ युद्ध करने वाले आल्हा और ऊदल भी शारदा माता के भक्त थे। इन दोनों ने ही सबसे पहले जंगलों के बीच शारदा देवी के इस मंदिर को खोजा था। इसके बाद आल्हा ने इस मंदिर में 12 साल तक तपस्या कर देवी को प्रसन्न किया था और माता ने उन्हें आशीर्वाद दिया था। यहां मंदिर के पास आल्हा-ऊदल तालाब भी है।


-: तुलसी संग्रहालय, रामवन :-

यह पुरातत्व संग्रहालय सतना जिले का मुख्य आकर्षण माना जाता है। यहां आने के बाद पर्यटकों की सूची में इसका नाम अंकित रहता है। यह संग्रहालय यहां रामवन नामक स्थान परस्थित है, जो कि सतना शहर से लगभग 16 किमी दूर है। इस संग्रहालय को वर्ष 1977 में स्थापित किया गया था । इसे तुलसी संस्कृति के रूप में भी लोग जानते हैं। यहां आकर आप सतना जिले के गौरवशाली अतीत की झांकी देख सकते हैं। यहां पुरातात्विक महत्व की वस्तुएं करीने से संजोकर रखी गई हैं। संग्रहालय के बाहर बजरंग बली की विशाल प्रतिमा स्थापित है। यह प्रतिमा दूर से पर्यटकों का ध्यान खीचंती है। यह पूरा क्षेत्र रमणीक लगता है।


-: बिरसिंहपुर गैवीनाथ मंदिर :-

सतना जिले के बिरसिंहपुर में एक ऐसा शिव मंदिर है, जिसके बारे में कहा जाता है कि वहां मुगल शासक औरंगजेब ने हमला किया था। औरंगजेब द्वारा गैवीनाथ धाम में शिवलिंगको तोड़ने का प्रयास किया गया था, जिससे मंदिर में विराजमान शिवलिंग खंडित हो गया था। हालांकि इसके प्रति आजतक श्रद्धालुओं की आस्था कम नहीं हुई और देश के कोने-कोने से बाबा के दर्शन के लिए भक्त आस्था के साथ पहुंचते हैं। खासतौर पर शिवरात्रि और सावन मास में लाखों की संख्या में भक्त शिवलिंग के दर्शन करने पहुंचते हैं।


-: टमस नदी :-

टमस नदी इस शहर को कुदरती रूप से संवारने का काम करती है। पर यहां इतिहास और कला-संस्कृति में दिलचस्पी रखने वाले लोग खासतौर पर आते हैं। इस क्षेत्र का संबंध महाभारत काल से भी रहा है। यहां भरहुत नामक गांव से बौद्ध धर्म से जुड़े साक्ष्य प्राप्त किए गए हैं। 1873 में पुरातात्विक सर्वेक्षण के दौरान यहांबौद्ध स्तूप खोजा गया था।यहां से प्राप्त की गई बहुत-सी प्राचीन वस्तुओं को पुरातत्व विभाग के संग्रहालय में भेज दिया गया है। माना जाता है रामायण काल में भगवान राम का सतना के चित्रकूट में आगमन हुआ था।


-: माधवगढ़ का किला :-

सतना जिले से करीब 5 किलोमीटर दूर स्थित माधवगढ़ का किला कभी रीवा रियासत का प्रमुख केंद्र था। दुश्मनों के हमले से बचने के लिए इसे टमस नदी के किनारे बनाया गया था। प्राकृतिक संरचना और इसकी बनावट इसे विशेष बनाती हैं। इस किले की बनावट और कलाकारी सैलानियों को अपनी ओर आकर्षित करती है। ऐसा कहा जाता है कि अठारहवीं शताब्दी में रीवा रियासत के महाराज विश्वनाथ सिंह जूदेव ने बहोलखंड को इसे तोहफे में दिया था।हालांकि आज यह किला उपेक्षा का शिकार है। माना जाता है कि यह करीब चार सौ वर्ष पुराना है।


-: उस्ताद अलाउद्दीन खां का विरासत और "मेहर घराना" :-

उस्ताद अलाउद्दीन खां का जन्म 1862 में नबी नगर उपजिला (अब बांग्लादेश) में हुआ था, पर उन्होंने भारत (मप्र) के मैहर नामक स्थान पर रहकर संगीत को नई ऊंचाइयां दी। सन् 1935 में पं.उदय शंकर के बैले समूह के साथ उन्होंने यूरोप का दौरा किया था। उनका निधन 6 सितंबर, 1972 को परहुआ था। हालांकि वे सरोद वादक रहे, पर उन्हें अन्य वाद्ययंत्रों को बजाने में भी महारत हासिल थी। कहा जाता है कि उन्हें 248 प्रकार के वाद्ययंत्रों को बजाने में महारत हासिल थी। इसके बाद भी संगीत सीखने की उनकी भूख कम नहीं हुई थी।वे जीवन भर संगीत सीखने के लिए गुरु की तलाश करते रहे। उन्होंने जल तरंग जैसे वाद्ययंत्र का आविष्कार किया। 200 से अधिक रागों का ईजाद कर मैहर का नाम विश्व भर में रोशन किया।


-: उस्तादों के उस्ताद :-

पंडित रविशंकर हों या हरि प्रसाद चौरसिया, फिल्म जगत के प्रसिद्धअभिनेता पृथ्वीराज कपूरहों या फिर आचार्य रजनीश, इन सभी को बाबा यानी उस्ताद ने अपने परिवार की तरह संगीत की शिक्षा देकर राह दिखाई। बाबा के नाती राजेश अली बताते हैं कि यह घटना तब की है, जब बाबा बाजार से घर लौट रहे थे। रास्ते में एक भिखारी डफली बजाकर भीख मांग रहा था, लेकिन उसे किसी ने एक रुपया भी नहीं दिया। इससे उन्हें बहुत पीड़ा हुई। उन्होंने भिखारी से डफली ले ली और अपना अंगोछा बिछाकर डफली बजाने लगे, जिसे सुनने लोगों की भीड़ जुट गई। लोगों ने जमकर पैसे लुटाए । पैसे की पोटली बांधकर बाबा ने सारे पैसे भिखारी को दे दिए।


-: मैहर बैंड की स्थापना :-

बाबा अलाउद्दीन खां ने मैहर बैंड की स्थापना मैहर के तत्कालीन राजा बृजनाथ सिंह के आदेश पर 1917 में एक बैंड पार्टी के रूप में की थी। तब इससे करीब डेढ़ सौ अनाथ लड़कों को जोड़ा गया था। आजादी के बाद 1949 में विंध्य प्रदेश बनने पर बैंड को खत्म करने की नौबत आ गई थी, पर तब केंद्र सरकार ने दखल देकर इसे बचा लिया।1955 में यहां संगीत का एक कॉलेज खोल कर बैंड को उससे जोड़दिया गया।


-: पद्म भूषण से सम्मानित :-

कला के क्षेत्र में सन् 1958 में उस्ताद को पद्मभूषण से सम्मानित किया गया।1954 में संगीत नाट्य अकादमी फेलोशिप' से नवाजा गया। उनकी सबसे खास रिकॉर्डिंग ऑल इंडिया रेडियो में 1950 से1960 के दशक में की गई।


-: अनूठा व्हाइट टाइगर सफारी :-

विंध्य की धरा सफेद बाघों कीजननी है। इसी विंध्य क्षेत्र ने पूरी दुनिया को सफेद बाघ दिए हैं। मुकुंदपुर व्हाइट टाइगर सफारी में देश-विदेश से लोग सिर्फ व्हाइट टाइगर को देखने आते हैं। इसकी‌ दूरी सतना से तकरीबन 55 किमी. और मैहर से 60 किमी.‌है। सीधी के जंगलों के बीच डेवा गांव है, जहां रीवा महाराज ने अपने अतिथि महाराजा अजित‌ सिंह के सम्मान में आखेट काशिविर लगाया था। इसी के पासपनखोरा के जंगल में एक नालेके किनारे एक गुफा है, जहां से 27 मई, 1951 को विंध्य क्षेत्र में महाराज रीवा मार्तंड सिंह जूदेव द्वारा एक सफेद बाघ शावक को लाकर अपने गोविंदगढ़ किले में रखा गया था। जंगल से जिंदा लाया जाने वाला संभवतः यह‌ आखिरी सफेद बाघ था। चूंकि यह सफेद बाघ शावक सबका मन मोह रहा था, इसलिए इसका नाम मोहन रखा गया। इसी से बाघों का प्रजनन प्रारंभ हुआ और फिर गोविंदगढ़ विश्व में सफेद बाघों के पहले प्रजनन केंद्र के रूप में विख्यात हुआ।


-: खुरचनका खास स्वाद :-

सतना पूर्वोत्तर मध्य प्रदेश का इलाका है। उत्तर प्रदेश से सटे सीमावर्ती इलाका होने के कारण यहां के खानपान पर उत्तर प्रदेश का प्रभाव नजर आता है। मध्यप्रदेश की पोहा जलेबी, मोठ दाल नमकीन से लेकर उत्तर प्रदेश की शिंकजी का आनंद आप यहां ले सकते हैं। मिठाई में सतना के रामपुर बाघेलान का खुरचन‌ बहुत प्रसिद्ध है। सतना-रीवा मार्ग से गुजरें, तो वहां खुरचन का स्वाद लेना न भूलें।


-: उद्योग प्लांट के नाम से है मशहूर सतना और मैहर :-

उद्योग प्लांट के नाम से है मशहूर सतना और मैहर विंध्य की पहाड़ियों के बीच स्थित होने के कारण सतना और मैहर में सीमेंट के कई कारखाने स्थापित किए गए हैं। यहां पर केजेएस सीमेंट, मैहर सीमेंट और रिलायंस सीमेंट के प्लांट स्थापित हैं,जहां से पूरे देश में सीमेंट की आपूर्ति की जाती है। इन कारखानों में स्थानीय लोगों को रोजगार के अवसर मिलते हैं। यहां इस तरह के और कारखाने लगा कर युवाओं को रोजगार उपलब्ध कराया जा सकता है।


कैसे और कब जाएं?

मैहर रेल मार्ग और सडक मार्ग एनएच-7(राष्ट्रीय राजमार्ग) से जुड़ा हुआ है। मैहर रेलवे स्टेशन पश्चिम मध्य रेलवे के कटनी और सतना स्टेशनों के बीच में स्थित है।शारदा माता मंदिर मैहर रेलवे स्टेशन से करीब 6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।मैहर से निकटतम हवाई अड्डा जबलपुर है। देश के कोने-कोने से आने वाले श्रद्धालु हवाई यात्राकरके जबलपुर और फिर वहां से ट्रेन, निजी वाहन या टैक्सी के जरिए मैहर पहुंच सकते हैं। मानसून और सर्दी का समय यहां आने के लिए उपयुक्त माना जाताहै। हालांकि मैहर देवी की वजह से यहां वर्ष भर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है।



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